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Rare polio case reported in Meghalaya; know everything about it | सेहतनामा- पोलियो मुक्त भारत में 10 साल बाद मिला केस: क्या होता है वैक्सीन डिराइव्ड संक्रमण, जानें पोलियो के लक्षण और इलाज

27 मिनट पहलेलेखक: गौरव तिवारी

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तारीख थी 27 मार्च, 2014। भारत के लिए यह बड़ा दिन था। इस दिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भारत को पोलियो मुक्त घोषित कर दिया था। ये वह तारीख थी जिसके ठीक 3 साल पहले भारत में पोलियो का आखिरी केस दर्ज किया गया था।

भारत में एक बार फिर पोलियो को लेकर खबरें बन रही हैं। मेघायल में पोलियो का एक केस मिला है। इसे लेकर अफरा-तफरी मचते देख स्वास्थ्य मंत्रालय ने बयान में कहा है कि इसमें इतना घबराने की बात नहीं है। यह वैक्सीन डिराइव्ड मामला (Vaccine Derived Polio Case) है।

वैक्सीन डिराइव्ड पोलियो का मतलब है कि इन्फेक्शन पोलियो की वैक्सीन में मौजूद वायरस के कमजोर स्ट्रेन की वजह से फैला है। यह ‘वन्स इन अ व्हाइल केस’ है। इसका खतरा उन बच्चों को अधिक होता है जिनकी इम्युनिटी बहुत कमजोर होती है।

आज ‘सेहतनामा’ में बात करेंगे वैक्सीन डिराइव्ड इन्फेक्शन और पोलियो की। साथ ही जानेंगे कि-

  • पोलियो कितनी पुरानी बामारी है?
  • भारत में इसका प्रकोप कब फैला था?
  • पोलियो के लक्षण और इलाज क्या है?

वैक्सीन का मतलब क्या है

किसी वैक्सीन को इस तरह समझिए कि किसी शख्स को भविष्य में आशंकित लड़ाई के लिए तैयार किया जा रहा है। यह किसी ट्रेनिंग की तरह ही है। सेना के जवानों को किसी युद्ध के लिए तैयार करते समय युद्ध जैसी परिस्थितियां क्रिएट करके उससे बाहर निकलना और विजय पाना सिखाया जाता है। इसके लिए युद्ध अभ्यास भी किए जाते हैं। ठीक इसी तरह वैक्सीन काम करती है।

एक वैक्सीन हमारे शरीर को किसी बीमारी, वायरस या संक्रमण से लड़ने के लिए तैयार करती है। वैक्सीन में संक्रमण के लिए जिम्मेदार पैथोजन्स को कमजोर स्वरूप या निष्क्रिय मात्रा में हमारे शरीर में भेजा जाता है। ये हमारे शरीर को हल्का बीमार कर सकते हैं, हालांकि अक्सर ये इतने कमजोर होते हैं कि शरीर इनसे निपटने में सक्षम होता है। ये हमारे इम्यून सिस्टम को संक्रमण (आक्रमणकारी वायरस) की पहचान करने के लिए प्रेरित करते हैं और उनके खिलाफ शरीर में एंटीबॉडी बनाते हैं। जो बाहरी हमले से लड़ने में हमारे शरीर की मदद करती हैं।

क्या होता है पोलियो

पोलियो (Poliomyelitis) पोलियोवायरस के कारण होने वाली बीमारी है। ज्यादातर लोगों में इसके लक्षण बहुत हल्के होते हैं या फिर होते ही नहीं हैं। जबकि कुछ लोगों में यह संक्रमण पैरालिसिस या मृत्यु का कारण बन सकता है।

पोलियो कितनी तरह का होता है

पोलियो हमारे शरीर को अलग-अलग तरह से प्रभावित कर सकता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि वायरस ने शरीर के किस भाग में हमला किया है और कहां बढ़ रहा है। इसके आधार पर ही पोलियो के प्रकार तय होते हैं।

एबोर्टिव पोलियोमाइलाइटिस (Abortive Poliomyelitis)

इसके कारण आंतों में फ्लू जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। यह बहुत दिनों तक नहीं चलता है और लंबे समय तक चलने वाली समस्याओं का कारण नहीं बनता है।

नॉन-पैरालिटिक पोलियोमाइलाइटिस (Non-paralytic Poliomyelitis)

इसके कारण एसेप्टिक मेनिनजाइटिस हो सकता है। इसका मतलब है कि मस्तिष्क के आसपास के भाग में सूजन आ सकती है। इसमें एबोर्टिव पोलियोमाइलाइटिस की तुलना में अधिक लक्षण सामने आते हैं और हॉस्पिटल जाने की नौबत आ सकती है।

पैरालिटिक पोलियोमाइलाइटिस (Paralytic Poliomyelitis)

यह कंडीशन तब बनती है जब पोलियो वायरस हमारे मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी पर हमला करता है। यह उन मांसपेशियों को पंगु बना सकता है। जो हमें सांस लेने, बोलने, कुछ निगलने और अंगों को हिलने-डुलने की अनुमति देती हैं।

पोलियो के कारण शरीर के कौन से हिस्से प्रभावित हो रहे हैं, इसके आधार पर इसे स्पाइनल पोलियो या बल्बर पोलियो कहा जाता है। स्पाइनल और बल्बर पोलियो एक साथ भी हो सकते हैं। ऐसी कंडीशन को बल्बोस्पाइनल पोलियो कहते हैं। पोलियो से पीड़ित 1% से भी कम लोगों को पैरालिटिक पोलियोमाइलाइटिस होता है।

पोलियोएन्सेफलाइटिस एक रेयर पोलियो है जो ज्यादातर शिशुओं को प्रभावित करता है। इसके कारण मस्तिष्क में सूजन आ जाती है। यह घातक होता है।

पोस्ट-पोलियो सिंड्रोम

यह कंडीशन तब बनती है जब पोलियो के लक्षण पोलियो संक्रमण के सालों बाद वापस आते हैं। यह इसलिए अधिक खतरनाक है कि इस दौरान संक्रमित व्यक्ति ए-सिंप्टमेटिक होकर भी अन्य लोगों को संक्रमित कर सकता है।

पोलियो के लक्षण क्या हैं

पोलियो वायरस से संक्रमित होने वाले 95 से 99% लोग ए-सिंप्टेमेटिक होते हैं। इसे सबक्लिनिकल पोलियो के नाम से भी जाना जाता है। कोई भी संक्रमित व्यक्ति बिना लक्षणों के भी पोलियो वायरस फैला सकता है।

पोलियो के कारण पूर्ण पैरालिसिस (लकवा) विकसित होना रेयर है। पोलियो के सभी मामलों में से 1% से भी कम के परिणामस्वरूप स्थायी पैरालिसिस हो सकता है। पोलियो पैरालिसिस के 5-10% मामलों में वायरस ने उन मांसपेशियों पर हमला किया होता है जो हमें सांस लेने में मदद करती हैं और मौत का कारण बनती हैं।

पोलियो कैसे फैलता है

पोलियो खांसने या छींकने से या किसी संक्रमित व्यक्ति के मल (मल) के संपर्क में आने से फैल सकता है। यह कैसे होता है, देखिए।

  • मल को छूने के बाद अपने हाथ न धोने से (जैसे डायपर बदलते समय)।
  • दूषित पानी पीने से।
  • ऐसे फूड आइटम्स खाने से, जो दूषित पानी के संपर्क में आए हैं।
  • दूषित पानी में तैरने से।
  • खांसने या छींकने से।
  • पोलियो से पीड़ित किसी व्यक्ति के निकट संपर्क में रहने से।
  • दूषित सतहों को छूने से।

इसका इलाज क्या है

पोलियो के इलाज के लिए कोई विशेष दवाएं नहीं बनी हैं। इसके संक्रमण के बाद पैदा हुए लक्षणों के रहते जीवन को आसान बनाने के लिए कुछ मशीनों या दवाओं का सहारा लिया जा सकता है।

लक्षणों में सुधार के लिए कुछ कोशिशें की जा सकती हैं:

  • अधिक से अधिक तरल पदार्थ पी सकते हैं (जैसे पानी और जूस।)
  • मांसपेशियों के दर्द में राहत के लिए हीट पैक का उपयोग कर सकते हैं।
  • जरूरत पड़ने पर दर्द निवारक दवाएं ले सकते हैं (जैसे इबुप्रोफेन।)
  • फिजिकल थेरेपी ले सकते हैं।
  • डॉक्टर द्वारा बताई गई एक्सरसाइज कर सकते हैं।
  • संक्रमण के बाद शरीर को भरपूर आराम मिलना जरूरी है।

पोलियो से कैसे बच सकते हैं

पोलियो से बचाव का सबसे अच्छा तरीका वैक्सीनेशन कराना है। इसका वैक्सीनेशन आमतौर पर बचपन में किया जाता है। अगर किसी व्यक्ति को बचपन में टीका नहीं लगाया गया या वह नहीं जानता है कि उसे टीका लगाया गया है या नहीं, तो डॉक्टर से इस बारे में सलाह ले सकता है।

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