6 घंटे पहलेलेखक: शैली आचार्य
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मां बनना दुनिया का सबसे खूबसूरत अहसास है। यह जितना खूबसूरत है, उतना ही मुश्किलों भरा भी है। महिलाओं को प्रकृति से मां बनने का वरदान तो मिला है, लेकिन इसकी प्राप्ति के लिए उन्हें कठोर तप करना पड़ता है।
प्रेग्नेंसी का न केवल महिला के शरीर पर असर पड़ता है, पर साथ-साथ ही उसके मस्तिष्क पर भी उतना ही गहरा असर होता है। नौ महीनों में वह कई तरह के शारीरिक और मानसिक कष्ट सहती है। इस दौरान बार-बार उसके धैर्य की परीक्षा होती है, उसे कई त्याग करने होते हैं और तब जाकर उसकी गोद में मुस्कराती है ‘जिंदगी’।
प्रेग्नेंसी और पेरेंटहुड का असर जब महिला के दिमाग पर पड़ता है तो उसे ‘प्रेग्नेंसी ब्रेन’ या फिर ‘मम्मी ब्रेन’ कहते हैं। इसे कई और नामों से भी जाना जाता है जैसे ‘मॉमनेशिया’।
दरअसल, गर्भावस्था में जिस महिला को प्रेग्नेंसी ब्रेन होता है, उसकी याददाश्त थोड़ी कमजोर हो जाती है, या फिर वह चीजें जल्दी-जल्दी भूलने लगती है। बहुत सी महिलाएं गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद इस समस्या से जूझ रही होती हैं। लेकिन इसके बारे न तो उन्हें सही जानकारी होती है और न ही वे किसी से यह शेयर कर पाती हैं।
‘नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन’ की एक स्टडी के मुताबिक, 80% से ज्यादा प्रेग्नेंट महिलाएं ‘प्रेग्नेंसी ब्रेन’ से गुजरती हैं। लगभग हर महिला ही गर्भावस्था के दौरान मस्तिष्क में कई बदलाव महसूस करती है।
तो आज ‘सेहतनामा’ में हम बात करेंगे प्रेग्नेंसी ब्रेन की। जानेंगे कि गर्भावस्था और पेरेंटहुड में इस समस्या के क्या लक्षण और कारण होते हैं। साथ ही जानेंगे कि कैसे गर्भवती महिलाएं इससे निजात पा सकती हैं। इस विषय पर दैनिक भास्कर से गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. सीमा शर्मा ने बात की और इसको लेकर कुछ सुझाव भी दिए।
नेचर न्यूरो साइंस में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, गर्भावस्था के दौरान और मां बनने के बाद महिलाओं के मस्तिष्क में कई जगह ग्रे-मैटर की मात्रा कम हो जाती है। ग्रे-मैटर मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में एक प्रकार का टिशू है, जो आपको दिन-प्रतिदिन सामान्य रूप से कार्य करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

प्रेग्नेंसी ब्रेन के क्या हैं लक्षण
प्रेग्नेंसी ब्रेन एक सामान्य और अस्थायी अवस्था है और ये प्रसव के बाद ठीक हो जाती है। जरूरी नहीं कि इस समस्या से हर महिला गुजरे ही, लेकिन कई महिलाओं के लिए यह गर्भावस्था का एक सामान्य हिस्सा है। अमेरिका और यूरोप में लोग इसे गंभीरता से लेते हैं, लेकिन भारत जैसे देशों में इसे ज्यादातर नजरअंदाज कर दिया जाता है।
यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया में पब्लिश एक रिसर्च के मुताबिक, प्रेग्नेंसी के बाद महिलाओं के मस्तिष्क में काफी बदलाव होते हैं। खासतौर पर उनकी सोचने-समझने और महसूस करने की शक्ति पर मां बनने के बाद बहुत असर पड़ता है।
कब शुरु होती है प्रेग्नेंसी ब्रेन की समस्या
- प्रेग्नेंसी ब्रेन की शुरुआत गर्भावस्था के पहले तीन-चार महीने से शुरु हो सकती है।
- प्रेग्नेंसी के दैरान शरीर में कई हार्मोन्स रिलीज होते हैं और जैसे-जैसे इनकी मात्रा बढ़ती है, वैसे-वैसे ही मस्तिष्क में भी बदलाव आने लगते हैं।
- इस दौरान शरीर में भी कई बदलाव आते हैं। नींद न आना, चिड़चिड़ापन, चीजें भूलना आम समस्या बनकर उभरती है।
ऑस्ट्रेलियन जर्नल में पब्लिश एक स्टडी ‘कॉग्निटिव इम्पेयरमेंट ड्यूरिंग प्रेग्नेंसी: ए मेटा एनालिसिस’ के मुताबिक, सोचने-समझने की क्षमता पर बुरा असर पड़ना ही ‘प्रेग्नेंसी ब्रेन’ या ‘बेबी ब्रेन’ कहलाता है।

डॉ. सीमा कहती हैं कि लॉस ऑफ मेमोरी जैसी समस्या में छोटी-छोटी बातें भूल जाना, चीजें रखकर भूल जाना, किसी काम पर फोकस न कर पाना, अपनी चीजों को व्यवस्थित करके रखने में भी कठिनाई होना जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
गर्भवती महिलाएं साधारण निर्णय लेने में भी संकोच महसूस करने लगती हैं। यह स्थिति महिलाओं में गर्भावस्था में हुए हार्मोनल बदलाव के कारण होती है। गर्भावस्था के दौरान हार्मोन में होने वाले बड़े बदलावों का असर मस्तिष्क पर पड़ता है, जिससे स्मृति और ध्यान पर असर पड़ता है। गर्भावस्था में नींद में भी कमी आ जाती है, जो मस्तिष्क पर सीधा असर डालती है। नींद न आने की वजह से स्ट्रेस लेवल भी बढ़ता है।
प्रेग्नेंसी ब्रेन से गर्भवती महिलाएं कैसे करें बचाव
गर्भवती महिलाएं हमेशा अपने होने वाले बच्चे के बारे में सोचती रहती हैं। जैसेकि होने वाले बच्चा कैसा होगा, कहीं उसे कोई दिक्कत तो नहीं होगी, बच्चे की ग्रोथ ठीक हो रही है कि नहीं, ऐसी तमाम आशंकाएं मां के मन में जन्म ले रही होती हैं। जब यह आशंकाएं जरूरत से ज्यादा होने लगती हैं तो ये तनाव और चिड़चिड़ेपन का कारण बन जाती हैं। इससे वह न तो किसी काम में मन लगा पाती हैं और न ही अपने ऊपर ध्यान दे पाती हैं।
9 महीने के बाद जब बच्चे का जन्म होता है, तब डिलीवरी के 48 घंटे में ही महिला की बॉडी से करीब 80% प्लेसेंटल हार्मोन्स निकलने बंद हो जाते हैं। नवजात के जन्म लेने के साथ ही मां की भूमिका बदल जाती है। नींद में कमी और नवजात को पालने की नई जिम्मेदारी से प्रेग्नेंसी ब्रेन ‘मम्मी ब्रेन’ में बदल जाता है। लेकिन समय के साथ यह समस्या दूर भी हो जाती है।
डॉ. सीमा सुझाव देती हैं कि प्रेग्नेंसी ब्रेन जैसी समस्याओं में महिलाएं टाइम मैनेजमेंट करना सीखें। वे हर रोज की योजनाएं बनाएं, यह उनकी भूलने की समस्या को कम कर सकता है। साथ ही महिलाओं को पर्याप्त नींद लेना और आराम करना बहुत जरूरी है।
अक्सर ऐसा होता है गर्भावस्था में या उसके बाद महिलाओं का खाने से जी मचलाता है और वे अपने खान-पान पर ध्यान नहीं दे पाती हैं। डॉ. सीमा उन्हें ऐसा न करने की सलाह देती हैं। महिलाओं को पौष्टिक आहार लेना चाहिए। साथ ही योग, मेडिटेशन को अपनी लाइफस्टाइल में शामिल करना चाहिए।
