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Logotherapy Explained; Finding Meaningful Life And Purpose | रिलेशनशिप- अंधेरे दिनों में रौशनी के बारे में सोचना: यही है लोगोथेरेपी, मनोविज्ञान की ऐसी खोज, जिसने बहुतों की जिंदगी बदल दी

23 मिनट पहले

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बात दूसरे विश्व युद्ध के वक्त की है। यूरोप धीरे-धीरे हिटलर के कब्जे में आ रहा था। जहां-जहां हिटलर का कब्जा होता, वहां के यहूदियों की शामत आ जाती।

इस दौरान लाखों यहूदियों को या तो मार दिया गया या फिर जानवरों की तरह कॉन्सेंट्रेशन कैंप में बंद कर दिया गया। ऐसे ही एक कॉन्सेंट्रेशन कैंप में मनोविज्ञान के प्रोफेसर विक्टर फ्रैंकल को भी उनके परिवार के साथ बंद किया गया था।

उन सभी को यहूदियों को कॉन्सेंट्रेशन कैंप में बेहद बुरे हालात से गुजरना पड़ा। इसी दौरान विक्टर के पिता की भूख और निमोनिया से मौत हो गई। उनकी मां और भाई को भी गैस चैंबर में मार दिया गया। विक्टर की प्रेग्नेंट पत्नी की भी बीमारी से मौत हो गई।

लेकिन इन सभी के बीच विक्टर ने खुद को संभाले रखा और हिम्मत नहीं हारी। वे किसी तरह कॉन्सेंट्रेशन कैंप से निकलने में सफल हुए। आगे चलकर उन्होंने एक किताब लिखी, ‘मैन्स सर्च फॉर मीनिंग’।

इस किताब में उन्होंने मुश्किल वक्त में जिंदगी के मायने की तलाश की बात कही है। इसके लिए उन्होंने ‘लोगोथेरेपी’ का विकास किया, जिसकी मदद से लाखों लोग अपनी जिंदगी का उद्देश्य ढूंढने में सफल हुए हैं।

जब खो जाएं जिंदगी के मायने

जिंदगी में ऐसा भी वक्त आता है, जब अपने अस्तित्व की चिंता होने लगती है। ‘हम कौन हैं, क्या कर रहे हैं और ये सब कर ही क्यों रहे हैं,’ जैसे सवाल मन में उठने लगते हैं।

आसान भाषा में कहें तो जिंदगी का उद्देश्य नजर नहीं आता है। रोज-रोज वही काम करने से मन थक जाता है। सपने धुंधले पड़ने लगते हैं और जिंदगी के लिए प्यार कम होता चला जाता है।

ऐसी स्थिति में कई बार इंसान डिप्रेशन का शिकार भी हो सकता है। गंभीर मामलों में सुसाइड के ख्याल भी आ सकते हैं।

ऐसी स्थिति में कुछ मनोवैज्ञानिक टिप्स हमारे काम आ सकते हैं।

क्या है लोगोथेरेपी, जिसके सहारे विक्टर ने ढूंढा जिंदगी का मकसद

लोगोथेरेपी मशहूर मनोचिकित्सक विक्टर फ्रैंकल द्वारा विकसित एक मनोवैज्ञानिक थेरेपी है, जो मुश्किल वक्त में जिंदगी के प्रति सकारात्मक नजरिया बनाए रखने की सीख देती है।

इसे विक्टर फ्रैंकल के जीवन की मदद से भी समझा जा सकता है। जब विक्टर अपने परिवार के साथ हिटलर के खतरनाक कॉन्सेंट्रेशन कैंप में बंद थे तो वहां ज्यादातर कैदी यही सोचते थे कि वे बचेंगे भी या नहीं।

लेकिन विक्टर ने इस दौरान यह सोचा कि बचने के बाद वे क्या-क्या करेंगे। उन्होंने उस कैंप में ही किताब लिखने और नामी वक्ता बनने का ख्वाब देखा। इन्हीं ख्वाबों के सहारे उन्होंने कैंप के मुश्किल वक्त को काट लिया।

जिंदगी का उद्देश्य समझ न आए तो दिन भर की प्लानिंग करें

कई बार पढ़ाई, करियर या रिश्ते को लेकर मन में उलझनें होती हैं। या फिर किसी असफलता के बाद पूरी जिंदगी ही निरर्थक नजर आने लगती है। ऐसे में जीवन के प्रति अनुराग खत्म होने लगता है।

ऐसी स्थिति में अचानक से पूरी जिंदगी का उद्देश्य समझना मुश्किल हो सकता है। ऐसे में जिंदगी को छोटे-छोटे भागों में बांटकर देखना मददगार साबित होता है।

अमेरिकी टाइम मैनेजमेंट कोच और ल्यूसमी कंसल्टिंग के फाउंडर मार्क पेटिट शॉर्ट टर्म यानी छोटे-छोटे लक्ष्यों की मदद से जिंदगी के मायने समझने की सलाह देते हैं।

उदाहरण के लिए अगर यह समझ में नहीं आ रहा है कि नौकरी और करियर में आगे क्या करना है तो इसकी सोच छोड़ते हुए यह सोचिए कि आज दिन भर ऑफिस में क्या-क्या करना है, ऑफिस से लौटने के बाद की क्या प्लानिंग है।

ऐसे छोटे-छोटे प्लान बनाने और उसे पूरा करने के बाद पूरी जिंदगी की प्लानिंग का अच्छा मौका और कॉन्फिडेंस भी मिलेगा।

दूसरों को ‘थैंक्यू’ कहने से मिलेगा अपनी जिंदगी का मकसद

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की सबसे लंबी हैप्पीनेस स्टडी के प्रमुख शोधकर्ताओं में एक डॉ. रॉबर्ट वेल्डिंगर किसी के प्रति कृतज्ञता जाहिर करने को खुशियों की चाभी बताते हैं। रॉबर्ट के मुताबिक जब हम किसी को ‘शुक्रिया’ कहते हैं तो वास्तव में अपनी जिंदगी के उद्देश्य की तरफ एक मजबूत कदम बढ़ा रहे होते हैं।

जब हम किसी को अपनी जिंदगी में हुए अच्छे बदलाव के लिए शुक्रिया कहते हैं तो इसी दौरान हम यह भी तय कर रहे होते हैं तो हमारे लिए क्या अच्छा है और कौन सी चीजें ठीक नहीं हैं। यह सोच आगे चलकर जिंदगी के मायने तय करती है। उसकी राह दिखाती है।

जिंदगी के मायने ढूंढने के लिए खुद से पूछें सवाल

‘वह तो खुद से ही बातें करता रहता है, अकेले में बड़बड़ाता है। लगता है उसका दिमाग फिर गया है।’

कई बार खुद से बातें करने वाले लोगों के लिए ऐसे कमेंट पास किए जाते हैं।

लेकिन खुद से बातें करना हमेशा पागलपन की निशानी नहीं होती। यह भी संभव है कि वह इंसान खुद से बात करके अपनी जिंदगी के मायने तलाश कर रहा हो। या फिर किसी प्रॉब्लम को सॉल्व करने की कोशिश कर रहा हो।

‘वेरी वेल माइंड’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक मीनिंगलेस नजर आती जिंदगी के मायने ढूंढने के लिए खुद से सवाल पूछना जरूरी है। रिपोर्ट के मुताबिक खाली वक्त में शांत दिमाग से अपने मन को टटोलना और सभी संभावनाओं की तलाश करने से मुमकिन है कि ऐसे सवालों के जवाब मिल जाएं।

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