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- Sitaram Yechury Death Reason; Pneumonia (Lung Infection) Symptoms, Prevention Tips
19 मिनट पहलेलेखक: गौरव तिवारी
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सीपीआई(एम) के महासचिव और पूर्व राज्यसभा सांसद सीताराम येचुरी का लंबी बीमारी के बाद गुरुवार, 12 सितंबर को निधन हो गया। वे 72 वर्ष के थे। नई दिल्ली के एम्स में उनका इलाज चल रहा था। येचुरी को रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट (श्वसन नली) इन्फेक्शन था, जिसके कारण हुए कॉम्प्लिकेशन के चलते उनका असमय निधन हो गया।
रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन कई पैथोजेन्स के कारण हो सकता है। इनमें वायरस और बैक्टीरिया प्रमुख हैं। ये पैथोजेन्स संक्रमित व्यक्तियों के सीधे संपर्क में आने या दूषित सतहों को छूने से फैलते हैं। भारत के ज्यादातर शहरों में हवा की गुणवत्ता इतनी खराब है कि यह संक्रमण को और गंभीर बना देती है।
सीताराम येचुरी 19 अगस्त को निमोनिया की शिकायत के कारण एम्स में भर्ती हुए थे। बुजुर्गों और बच्चों में आमतौर पर निमोनिया ही रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन का कारण होता है। कई बार इसके लक्षण बहुत गंभीर हो जाते हैं और मौत की वजह भी बन सकते हैं।
इसलिए आज ‘सेहतनामा’ में निमोनिया की बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि-
- यह बच्चों और बुजुर्गों के लिए इतना खतरनाक क्यों है?
- निमोनिया के किन लक्षणों को इग्नोर नहीं करना चाहिए?
- इसकी जांच के लिए कौन से टेस्ट किए जाते हैं?
- निमोनिया का इलाज और बचाव के उपाय क्या हैं?
निमोनिया क्या है?
निमोनिया एक लंग (फेफड़े) इन्फेक्शन है। यह बैक्टीरिया, वायरस या फंगस के कारण हो सकता है। इसमें लंग्स के टिश्यूज में सूजन हो जाती है और लंग्स में फ्लूइड या पस (मवाद) पैदा हो सकता है। यह दो तरह का होता है- बैक्टीरियल और वायरल। बैक्टीरियल निमोनिया आमतौर पर वायरल निमोनिया से अधिक गंभीर होता है।
निमोनिया एक या दोनों फेफड़ों को प्रभावित कर सकता है। अगर दोनों लंग संक्रमित हैं तो इसे डबल निमोनिया कहते हैं।

बच्चों और बुजुर्गों को अधिक खतरा
निमोनिया किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है, लेकिन इसका खतरा छोटे बच्चों और बुजुर्गों को अधिक होता है। इसकी मुख्य वजह है कमजोर इम्यूनिटी। छोटे बच्चों का इम्यून सिस्टम पूरी तरह विकसित नहीं हुआ होता है। जबकि बुजुर्गों का इम्यून सिस्टम उम्र बीतने के साथ कमजोर हो जाता है। ग्राफिक में देखिए।

आइए ग्राफिक में दिए पॉइंट्स को विस्तार से समझते हैं।
- छोटे बच्चों और बुजुर्गों का इम्यून सिस्टम कमजोर होने से इन्हें किसी भी संक्रमण का जोखिम अधिक होता है। इसलिए इन्हें निमोनिया का भी अधिक खतरा होता है।
- 65 साल की उम्र आते-आते लोगों को कई तरह की बीमारियां घेर लेती हैं। जिसमें कई क्रॉनिक हेल्थ डिजीज भी हो सकती हैं। इनके कारण बुजुर्गों का शरीर कमजोर हो जाता है और निमोनिया जैसी बीमारियों का आसानी से शिकार बन जाता है।
- बहुत छोटे बच्चों और बुजुर्गों के लंग फंक्शन कमजोर होते हैं। इसलिए उन्हें निमोनिया अधिक प्रभावित करता है।
- इन दोनों ही उम्र में शरीर के ज्यादातर अंग किसी बीमारी के कारण मुश्किल में पड़ सकते हैं। इसलिए निमोनिया होने पर कॉम्प्लिकेशन होने का रिस्क भी ज्यादा होता है।
2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और 65 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गों के अलावा भी निमोनिया के कई रिस्क फैक्टर्स होते हैं, देखिए:
- अगर किसी को फेफड़े या हार्ट से संबंधित कोई बीमारी है।
- जिन्हें ऐसी न्यूरोलॉजिकल कंडीशन है, जिससे कुछ निगलने में कठिनाई होती है।
- डिमेंशिया, पार्किंसंस डिजीज और स्ट्रोक जैसी कंडीशंस से एस्पिरेशन निमोनिया का खतरा बढ़ जाता है।
- जो लोग लंबे समय से हॉस्पिटल में हैं, खासकर आईसीयू या वेंटिलेटर में हैं।
- जो लोग स्मोकिंग करते हैं।
- जो महिलाएं प्रेग्नेंट हैं।
निमोनिया के ये लक्षण कभी नजरअंदाज न करें
इसके लक्षण संक्रमण के कारण पर निर्भर करते हैं। निमोनिया के लक्षण कभी हल्के हो सकते हैं और कई बार बहुत गंभीर भी हो सकते हैं। शिशुओं, छोटे बच्चों और बुजुर्गों में अलग-अलग लक्षण हो सकते हैं। हालांकि इसके कुछ लक्षणों को कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।

निमोनिया के ट्रीटमेंट के लिए कौन से टेस्ट जरूरी हैं
इलाज कर रहे डॉक्टर संक्रमण के लक्षणों के आधार पर तय करते हैं कि फेफड़ों की कंडीशन का पता लगाने के लिए कौन से टेस्ट किए जाने हैं। चेस्ट एक्स-रे और सीटी-स्कैन जैसे कई जरूरी टेस्ट करके फेफड़ों की कंडीशन का पता लगया जाता है। इसके अलावा ब्लड टेस्ट से इसके संक्रमण का कारण पता चलता है। इसके आधार पर ही दवा देकर बीमारी को ठीक किया जाता है। आइए ग्राफिक में देखते हैं कि निमोनिया का सही इलाज करने से पहले कौन-कौन से टेस्ट करने जरूरी होते हैं।

निमोनिया का इलाज क्या है
निमोनिया का ट्रीटमेंट इसके संक्रमण के कारणों पर निर्भर करता है। इसके इलाज से पहले यह पता लगाया जाता है कि यह संक्रमण बैक्टीरिया, वायरस या फंगस में से किस पैथोजेन के कारण हुआ है। ट्रीटमेंट इस बात पर भी निर्भर करता है कि संक्रमण और लक्षण कितने गंभीर हैं।
- बैक्टीरियल इन्फेक्शन होने पर इसके इलाज में एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं।
- वायरल इन्फेक्शन से निमोनिया होने पर एंटीवायरल दवाएं दी जाती हैं।
- अगर इन्फेक्शन फंगस के कारण हुआ है तो इसके ट्रीटमेंट में एंटीफंगल दवाएं दी जाती हैं।
इसके बचाव के उपाय क्या हैं
मेडिसन की दुनिया में पुरानी कहावत है, प्रिवेंशन इज बेटर दैन क्योर। इसका मतलब होता है कि इलाज से बेहतर है बचाव करना। अगर थोड़ी सावधानियां बरती जाएं तो निमोनिया के इन्फेक्शन से बचा जा सकता है। आइए ग्राफिक में जरूरी प्रिवेंटिव टिप्स देखते हैं।
