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Ideal Work Hours Timing; L&T Chairman 90 Hours Working Controversy Explained | रिलेशनशिप- एस. एन. सुब्रह्मण्यन ने कहा- ‘90 घंटे काम करो’: यह वर्क कल्चर खतरनाक, वर्क-लाइफ बैलेंस जरूरी, साइकोलॉजिस्ट के 10 टिप्स

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9 मिनट पहलेलेखक: शिवाकान्त शुक्ल

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हाल ही में मल्टीनेशनल कंपनी लार्सन एंड टूब्रो (L&T) के चेयरमैन एस. एन. सुब्रह्मण्यन ने अपने एम्प्लॉइज को हफ्ते में 90 घंटे काम करने की सलाह दी। सुब्रह्मण्यन के इस बयान ने एक बार फिर वर्क-लाइफ बैलेंस पर बहस छेड़ दी है।

बॉलीवुड एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण से लेकर RPG ग्रुप एंटरप्राइजेज के चेयरमैन हर्ष गोयनका तक कई लोगों ने एस. एन. सुब्रह्मण्यन के इस बयान की कड़ी आलोचना की है।

इसके पहले इंफोसिस के को-फाउंडर नारायण मूर्ति ने भी हफ्ते में 70 घंटे काम करने की वकालत की थी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वर्क-लाइफ बैलेंस जरूरी नहीं है।

आज रिलेशनशिप कॉलम में बात वर्क-लाइफ बैलेंस के महत्व की। साथ ही जानेंगे कि-

  • वर्क और लाइफ के बीच संतुलन बनाना क्यों जरूरी है?
  • हफ्ते में कितने घंटे काम करना सेहत के लिए अच्छा है?

आगे बढ़ने से पहले नीचे दिए ग्राफिक में देखिए कि एस. एन. सुब्रह्मण्यन ने अपने बयान में क्या कहा।

वर्क-लाइफ बैलेंस क्यों जरूरी?

वर्क-लाइफ बैलेंस का मतलब अपने काम और पर्सनल लाइफ के बीच संतुलन बनाए रखना है। काम के बावजूद अपने परिवार, दोस्तों और खुद के लिए समय निकालना ही वर्क-लाइफ बैलेंस है।

वर्क-लाइफ बैलेंस न केवल हमारी फिजिकल-मेंटल हेल्थ के लिए, बल्कि रिश्तों के लिए भी जरूरी है। यह काम की प्रोडक्टिविटी बढ़ाने में भी मददगार है। वर्क-लाइफ बैलेंस बनाने के लिए सबसे जरूरी है कि अपने कामों की एक लिस्ट बनाएं और उसे प्रिऑरिटी के हिसाब से कम्प्लीट करें। वर्क-लाइफ बैलेंस के लिए और कौन सी चीजें जरूरी हैं, इसे नीचे पॉइंटर्स से समझिए-

काम के घंटों से ज्यादा जरूरी है क्वालिटी वर्क

आज के कॉम्पिटिटिव माहौल में लोग घंटे को काम का पैमाना मानते हैं। लेकिन असलियत यह है कि टाइम से क्वालिटी वर्क का कोई संबंध नहीं है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप किसी काम को कितनी लगन और अनुशासन के साथ करते हैं।

अधिक समय तक काम करने से थकान और मानसिक दबाव बढ़ता है, जिसका हमारे काम की क्वालिटी पर नकारात्मक असर पड़ता है। जबकि अगर किसी काम को पूरी मेहनत और लगन के साथ किया जाए तो कम समय में बेहतर रिजल्ट मिल सकता है। इसलिए ज्यादा घंटों तक कम करने के बजाय क्वालिटी वर्क पर ध्यान देना ज्यादा जरूरी है।

वर्क-लाइफ बैलेंसिंग से होते ये फायदे

वर्क और पर्सनल लाइफ का सही संतुलन तनाव और थकान काे कम करता है। इससे काम करने की क्षमता और प्रोडक्टिविटी में इजाफा होता है। जब वर्क प्रिऑरिटीज स्पष्ट होती हैं तो आप समय का सही उपयोग कर पाते हैं। काम के अलावा परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने से रिश्ता मजबूत होता है।

वर्क-लाइफ बैलेंस बनाए रखने से काम का प्रेशर कम होता है, जिससे बर्नआउट की समस्या कम होती है। इसके अलावा व्यक्ति अपनी पसंदीदा एक्टिविटीज के लिए भी समय निकाल पाता है। नीचे दिए ग्राफिक से समझिए कि वर्क-लाइफ बैलेंसिंग हमारे लिए कितनी फायदेमंद है।

ज्यादा घंटे काम करना सेहत के लिए नुकसानदायक

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO) के मुताबिक, 2016 में लंबे समय तक काम करने के कारण स्ट्रोक और हार्ट डिजीज से 7.45 लाख लोगों की मृत्यु हुई। लंबे समय तक काम करना हमारी सेहत के लिए नुकसानदायक है। इससे कई तरह की हेल्थ प्रॉब्लम्स हो सकती हैं।

ज्यादा घंटे काम से क्वालिटी लाइफ पर पड़ता असर

लंबे समय तक काम करने से सेहत के साथ-साथ कार्यक्षमता और उसकी क्वालिटी भी प्रभावित हो सकती है। नीचे पॉइंटर्स से इसके नुकसान समझिए-

  • हमेशा काम को लेकर परेशान महसूस कर सकते हैं।
  • दिनचर्या अस्त-व्यस्त हो सकती है।
  • पर्सनल लाइफ प्रभावित हो सकती है।
  • खुद को अकेला महसूस करने लगते हैं।
  • डिप्रेशन और एंग्जाइटी हो सकती है।
  • नींद संबंधी समस्या हाे सकती है।
  • हाई ब्लड प्रेशर की समस्या हो सकती है।
  • स्ट्रोक और हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है।

हफ्ते में कितने घंटे काम करना सही

तेजी से बदलते वर्क कल्चर में काम के घंटों की संख्या एक महत्वपूर्ण सवाल बन चुकी है। जहां एक ओर कुछ लोग लंबे समय तक काम करने को सफलता मानते हैं। वहीं दूसरी ओर यह भी माना जाता है कि वर्क और लाइफ के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।

भारत में फैक्ट्रीज एक्ट, 1948 के मुुताबिक, फैक्ट्रियों में एक हफ्ते में 48 घंटे काम का समय निर्धारित किया गया है। अगर कोई एम्प्लॉई ओवरटाइम करता है तो यह सप्ताह में 60 घंटे से ज्यादा नहीं होना चाहिए। इसके अलावा हफ्ते में एक दिन का अवकाश होना भी जरूरी है।

वहीं, WHO सप्ताह में औसतन 35-40 घंटे काम करने की सलाह देता है। इससे व्यक्ति वर्क और लाइफ के बीच संतुलन बना सकता है और पर्सनल लाइफ के लिए भी पर्याप्त समय निकाल सकता है।

वर्क-लाइफ बैलेंस से जीवन होता आसान

वर्क-लाइफ बैलेंसिंग से हम अपने वर्क प्रेशर और पर्सनल लाइफ की जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाते हैं। इससे हम परिवार, दोस्तों और सेल्फ केयरिंग के लिए समय निकाल पाते हैं, जो कि फिजिकल व मेंटल हेल्थ के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इससे हमारा जीवन आसान होता है। इसलिए हमेशा काम में न डूबे रहें। बाहर की दुनिया को भी एंजॉय करें। इससे न सिर्फ आपको आत्मसंतुष्टि मिलती है, बल्कि खुश भी रहते हैं।

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