25 मिनट पहले
- कॉपी लिंक
इस दुनिया में माता-पिता होना सबसे जिम्मेदारी का काम है। हर पेरेंट यही चाहता है कि उनका बच्चा एक अच्छा इंसान बने, कोई गलत आदतें न डाले, गलत काम न करे। इसी को ध्यान में रखते हुए पेरेंट्स बच्चों पर रोक-टोक भी करते हैं, जैसे यहां मत जाओ, वो मत खाओ, टीवी मत देखो, बाहर खेलकर जल्दी घर वापस आओ, किताब लेकर बैठ जाओ और न जाने क्या-क्या। पेरेंट्स द्वारा यह सब बातें बच्चों के हित के लिए ही कही जाती हैं। लेकिन वे यह नहीं जानते कि बच्चे रोक-टोक से नहीं बल्कि खुद अपने माता-पिता के आचरण से ही सीखते हैं।
इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति भी ऐसा ही कुछ कहते हैं। हाल ही में उन्होंने पेरेंट्स को यह कहते हुए बड़ी नसीहत दी कि बच्चों की पढ़ाई के लिए अनुशासन का माहौल बनाने की जिम्मेदारी माता-पिता की है। बच्चों को पढ़ने को कहकर पेरेंट्स खुद बैठकर फिल्में नहीं देख सकते हैं।
अक्सर माता-पिता बच्चों को तो पढ़ाई करने बिठा देते हैं, लेकिन खुद टीवी, सोशल मीडिया और फोन पर व्यस्त हो जाते हैं। वे बच्चों को ऐसी चीजें करने और सीखने के लिए कहते हैं, जो वो खुद नहीं कर रहे होते।
तो आज ‘रिलेशनशिप’ में बात करेंगे पेरेंटिंग की और जानेंगे कि कैसे माता-पिता अपने बच्चों को अनुशासन और पढ़ाई के लिए कैसे प्रेरित कर सकते हैं।
बचपन में ही पड़ती है भविष्य की बुनियाद
जीवन में बचपन ही एक ऐसा फेज है, जब हम बेफिक्र होते हैं। न किसी चीज की परवाह होती है और न ही कोई जिम्मेदारी। लेकिन यही वह वक्त भी है, जब बच्चों के अच्छे भविष्य की बुनियाद डाली जाती है। कैसे बच्चे को अच्छा संस्कार और अनुशासन सिखाया जाए, यह भी हम उन्हें इसी उम्र में बता सकते हैं।
ऐसे में पेरेंट्स अपने बच्चों की पढ़ाई को लेकर काफी चिंतित रहते हैं, उन पर रोक-टोक करते हैं और पढ़ाई को लेकर दबाव बनाते हैं। जैसे ही उन्हें बच्चा दिखता है, वे उसे कहने लगते हैं ‘खेलना बंद करो और पढ़ाई करने बैठ जाओ।’
लेकिन बच्चे तो आखिर बच्चे ही होते हैं, उन्हें पढ़ाई छोड़कर सब अच्छा लगता है। वे हमेशा कोई-न-कोई बहाना बनाकर पढ़ाई से बचने की कोशिश करते हैं। या तो उन्हें दोस्तों के साथ खेलना होता है या फिर टीवी देखना होता है।
सिर्फ मार्कशीट से बच्चे की योग्यता का मूल्यांकन ठीक नहीं
यह सच है कि परीक्षा में ज्यादा मार्क्स लाने वाले बच्चों के लिए करियर का चुनाव आसान हो सकता है। लेकिन सिर्फ इसके आधार पर बच्चे की योग्यता का मूल्यांकन करना सही नहीं। एवरेज मार्क्स स्कोर करने वाले बच्चे भी आगे चलकर अपनी प्रोफेशनल लाइफ में बहुत कामयाब होते हैं। बाकी बच्चे जो पढ़ाई में अच्छा नहीं कर पाते हैं, वे किसी और चीज में अच्छे होते हैं, जैसे आर्ट, म्यूजिक, डांस, डिजाइन, कम्प्यूटर वगैरह। इसलिए बच्चे को एकाग्रता के साथ पढ़ने के लिए प्रेरित जरूर करें, लेकिन परीक्षा में ज्यादा मार्क्स लाने के लिए उस पर दबाव न बनाएं।
स्कूल में बच्चे वैसे ही कई तरह के प्रेशर झेल रहे होते हैं, जैसे बाकी बच्चों से बेहतर करना, होमवर्क करना, एग्जाम और प्रेजेंटेशन में अच्छा प्रदर्शन करना। ऐसे में पेरेंट्स का भी एग्जाम को लेकर जरूरत से ज्यादा दबाव, डांटना-फटकारना उन पर नकारात्मक असर डाल सकता है। यह उनका आत्मविश्वास कमजोर कर सकता है।
अपने बच्चे की दूसरे बच्चों से तुलना न करें
बच्चों की दूसरे बच्चों से तुलना करना उनके लिए बहुत नुकसानदायक हो सकता है। भाई-बहनों, दोस्तों या पास-पड़ोस के बच्चों से तुलना करने से वे हीनभावना का शिकार हो सकते हैं, डिप्रेस महसूस कर सकते हैं। तुलना करके माता-पिता अनजाने में अपने बच्चों को बहुत नुकसान पहुंचा रहे होते हैं। उन्हें यह समझना चाहिए कि पड़ोस में रहने वाले बच्चे के रिजल्ट के आधार पर उनकी पेरेंटिंग की दिशा तय नहीं की जा सकती है।
अगर आप अपने बच्चे को अनुशासित करना चाहते हैं तो इन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखें-
- बच्चे को वक्त की कीमत समझाएं। यह आप कोई कहानी सुनाकर या मोटिवेशनल वीडियो दिखाकर भी कर सकते हैं।
- घर में बच्चे के लिए पढ़ाई का माहौल बनाएं। बच्चे के साथ मिलकर उसकी स्टडी टेबल की सफाई करें। घर के जिस हिस्से में वह पढ़ाई करता है, उसे अच्छे से सजाएं। इससे पढ़ाई में उसकी रुचि बढ़ सकती है।
- जब वो पढ़ाई कर रहा है, उस वक्त आप भी उसके साथ बैठकर पढ़ें ताकि उसे मोरल सपोर्ट मिले।
- बच्चे के साथ बात करने का समय निकालें। उससे उसके स्कूल और दोस्तों से जुड़ी बातें करें। टीवी देखने का एक वक्त तय करें, उसी में टीवी देखें।
- अगर बच्चा आपसे कोई मांग कर रहा है तो उसे तुरंत डांटकर चुप कराने की बजाय पहले उसकी सारी बातें ध्यान से सुनें और समझाएं।
- बच्चे के अच्छे काम करने पर उसकी सराहना करें। उसे और अच्छा करने के लिए मोटिवेट करें।
- बच्चे के स्कूल से लौटने के बाद उससे यह जानें कि आज क्लास में क्या पढ़ाया गया और उसे समझने में कोई दिक्कत तो नहीं हुई।
माता-पिता यह हमेशा याद रखें कि बच्चे चाहे जैसे भी हों, उन्हें हर हाल में आपके प्यार भरे मार्गदर्शन और सहयोग की जरूरत होती है। इसलिए उन्हें भरोसा दिलाएं कि आप हमेशा उनके साथ हैं।